रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO): भारत की रक्षा में नयापन और मज़बूती
1 min readरक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO): भारत की रक्षा में नयापन और मज़बूती
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, जिसे हम सब प्यार से DRDO कहते हैं, भारत के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण संस्था है। इसकी स्थापना 1958 में हुई थी और तब से यह देश की रक्षा में अपनी भूमिका निभा रहा है। DRDO का काम सिर्फ रॉकेट बनाना या हथियार विकसित करना ही नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी जगह है जहां वैज्ञानिक और इंजीनियर नए–नए प्रयोग करते हैं।
DRDO का मिशन
DRDO का मुख्य उद्देश्य भारतीय रक्षा प्रणाली को और मजबूत बनाना है। लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि ये लोग सिर्फ युद्ध की तैयारी करते हैं, तो आप गलत हैं। DRDO की सोच है कि अगर आप युद्ध से बच सकते हैं तो क्यों न बचें? इसलिए ये लोग नए हथियार तो बनाते ही हैं, लेकिन साथ ही ऐसे उपकरण भी बनाते हैं जो हमारे सैनिकों की सुरक्षा बढ़ा सकें। DRDO के वैज्ञानिक कुछ इस तरह सोचते हैं, “अगर दुश्मन के पास अच्छा हथियार है, तो हमारे पास उससे भी बेहतर होना चाहिए।“
DRDO के कुछ मशहूर प्रोजेक्ट
DRDO ने कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स पर काम किया है, जिनमें से कुछ के नाम सुनकर आप जरूर सोचेंगे, “वाह! ये तो हम भी जानते हैं!” आइए, कुछ मशहूर प्रोजेक्ट्स पर नज़र डालते हैं:
- अग्नि मिसाइल: नाम सुनकर ही दुश्मन कांपने लगते हैं। अग्नि मिसाइल सीरीज के अलग-अलग संस्करण हैं, जिनमें लंबी दूरी तक मार करने की क्षमता है। ये मिसाइलें शत्रु को साफ तौर पर संदेश देती हैं, “हम मज़ाक नहीं कर रहे!”
- तेजस लड़ाकू विमान: तेजस एक हल्का लड़ाकू विमान है जिसे DRDO ने विकसित किया है। ये विमान इतना तेज़ है कि इसे देख पाना भी मुश्किल है। इसके बारे में कहा जाता है, “तेजस को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है!”
- अकाश मिसाइल: अकाश एक मीडियम रेंज की सरफेस-टू-एयर मिसाइल है, जो हवा में उड़ते दुश्मन के जहाजों को ध्वस्त कर सकती है। इसे देखकर दुश्मन के पायलट खुद ही सोचेंगे, “भाई, वापस लौट चलो, यहाँ से कुछ नहीं होने वाला!”
DRDO में काम करना
DRDO में काम करना हर वैज्ञानिक का सपना होता है। यहां काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है, “हमारा काम करना किसी एडवेंचर से कम नहीं है।“ दिन-रात नये-नये प्रयोग करना और कभी-कभी तो ऐसे परिणाम आ जाते हैं कि खुद वैज्ञानिक भी सोच में पड़ जाते हैं, “ये हमने क्या बना दिया?”
DRDO के वैज्ञानिकों की एक बात बहुत खास है – इनके पास न केवल ज्ञान है, बल्कि हौसला भी है! अगर कोई प्रोजेक्ट फेल हो जाता है, तो ये लोग मायूस नहीं होते। इनका मानना है, “फेलियर इस द स्टेपिंग स्टोन टू सक्सेस!” यानी, असफलता सफलता की सीढ़ी है।
मज़ेदार किस्से DRDO के
DRDO में काम करना सिर्फ पढ़ाई-लिखाई तक ही सीमित नहीं है, यहाँ हंसी-मज़ाक भी खूब चलता है। एक बार की बात है, एक वैज्ञानिक ने एक नया उपकरण विकसित किया, जिसका नाम रखा गया ‘बेमिसाल‘। लेकिन जब इसका परीक्षण हुआ, तो यह उपकरण खुद ही उड़ गया और कहीं जाकर गिरा। बाद में पता चला कि इसमें छोटे से वायर की कमी थी। तभी से उस वैज्ञानिक को प्यार से “मिसाल भाई“ कहकर बुलाया जाता है।
DRDO का भविष्य
DRDO का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है। ये न केवल वर्तमान में भारतीय सेना को सशक्त बना रहे हैं, बल्कि भविष्य के लिए भी तैयारी कर रहे हैं। DRDO के वैज्ञानिक हमेशा कुछ नया करने की कोशिश में लगे रहते हैं। ये लोग मानते हैं कि, “समय के साथ कदम मिलाकर चलना ही असली समझदारी है।“
DRDO के वैज्ञानिकों की मेहनत और लगन की बदौलत ही भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। चाहे वो मिसाइल हो, लड़ाकू विमान हो या फिर अन्य कोई रक्षा तकनीक, DRDO ने हमेशा भारत को गर्व महसूस कराया है।
निष्कर्ष
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानि DRDO, भारत की मजबूत रीढ़ की हड्डी है। यह संगठन न केवल हमारी सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक तकनीक विकसित कर रहा है, बल्कि नए विचारों और नवाचारों को भी प्रोत्साहित कर रहा है। DRDO के वैज्ञानिक और इंजीनियर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं ताकि भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जा सके। और यह कहना गलत नहीं होगा कि इनकी मेहनत और लगन से ही भारत सुरक्षित है।
आखिर में, DRDO के वैज्ञानिकों के लिए एक ही बात कही जा सकती है, “आप लोग हैं, तो हम हैं!”