बिहार की राजनीति: एक दिलचस्प सफर

1 min read
बिहार की राजनीति: एक दिलचस्प सफर

बिहार की राजनीति: एक दिलचस्प सफर

बिहार की राजनीति हमेशा से ही दिलचस्प रही है, बिल्कुल वैसे ही जैसे गोलगप्पे खाने का मजा होता है – थोड़ा तीखा, थोड़ा मीठा और बहुत सारा मसालेदार! बिहार की राजनीति में वो सारे तत्व हैं, जो इसे रोमांचक और कभी-कभी फिल्मी बना देते हैं। चाहे चुनावी रैलियों का हल्ला हो, या पार्टी बदलने का खेल, बिहार की राजनीति में हमेशा कुछ न कुछ नया देखने को मिलता है।

पुरानी परंपराओं से लेकर नए चेहरों तक

बिहार की राजनीति की जड़ें काफी गहरी हैं। जयप्रकाश नारायण से लेकर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार तक, बिहार ने राजनीति के बड़े-बड़े दिग्गज देखे हैं। ये सभी नेता न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश की राजनीति को प्रभावित करने में कामयाब रहे हैं।

लेकिन, एक बात तो माननी पड़ेगी – बिहार के लोग जब वोट डालते हैं, तो वे बहुत सोचसमझकर डालते हैं। हर बार कुछ नया देखने को मिलता है। कोई कहेगा कि “हमने विकास के लिए वोट दिया”, तो कोई बोलेगा “हमने जाति के लिए वोट दिया”। और कुछ लोग तो ऐसे भी मिल जाएंगे जो कहते हैं, “हम तो बस इसलिए वोट दिए ताकि हमारे घर की छत पर एक पार्टी का झंडा लगा सकें!”

कोई ना कोई कारण जरूर होता है

बिहार की राजनीति में दलबदल एक आम बात हो गई है। एक नेता अगर सुबह एक पार्टी में है, तो दोपहर तक वो दूसरी पार्टी में मिल जाएगा, और शाम को अगर उनकी पत्नी को पसंद न आए, तो शायद वो फिर से पुरानी पार्टी में लौट आएं! दलबदल का ये खेल देख कर कभी-कभी लगता है, जैसे नेता पार्टी नहीं बदल रहे, बस नए कपड़े ट्राई कर रहे हैं।

जो कहता है, वही करता है?

बिहार की राजनीति में वादे करना तो जैसे गोलगप्पे खाना है, हर कोई करता है। लेकिन उन वादों को निभाना? ये थोड़ा मुश्किल काम है। नेताओं के चुनावी भाषण में सुनने को मिलता है, “हम आपके लिए ये करेंगे, वो करेंगे”, और बातों में इतने पुल बना देंगे कि गंगा नदी को भी पसीना आ जाए!

पर, सच्चाई यह है कि चुनावी वादे कभी-कभी वैसे ही होते हैं जैसे ‘रिश्तेदारों की बातें’ – सुनकर हंसो और भूल जाओ

जातीय समीकरण का खेल

अब बात करें जातीय समीकरण की, तो बिहार की राजनीति इससे अछूती नहीं रह सकती। यहाँ की राजनीति का गोलगप्पा भी जातीय समीकरण से बना होता है। हर पार्टी की कोशिश होती है कि वो सभी जातियों को खुश रख सके। यहाँ का चुनावी खेल भी नंबरों का होता है – जातीय संख्या का।

नया बिहार: युवा नेता और डिजिटल क्रांति

अब जब युवा नेता मैदान में उतर रहे हैं, तो उम्मीद है कि बिहार की राजनीति भी कुछ नया रंग लाएगी। सोशल मीडिया के दौर में नेता ट्विटर और फेसबुक पर भी एक्टिव हैं। कभी-कभी तो लगता है कि राजनीति अब सड़कों से ज्यादा मोबाइल स्क्रीन पर लड़ी जा रही है। लाइक और फॉलोवर्स की संख्या देखकर कोई भी नेता अपनी लोकप्रियता मापने लगा है।

अंत में

बिहार की राजनीति का सफर जितना पुराना है, उतना ही रोचक और मजेदार भी। हर चुनाव, हर नेता और हर फैसला यहां के लोगों के दिलों पर छाप छोड़ जाता है। और क्यों ना हो, आखिर ये बिहार की राजनीति हैजो है सबसे निराली!

तो अगली बार जब आप बिहार की राजनीति के बारे में सुनें, तो सोचिएगा जरूर कि आखिर ये खेल गोलगप्पे जैसा क्यों है – मसालेदार, मजेदार और कभी-कभी आँखों में पानी लाने वाला! बिहार की राजनीति, जिंदाबाद!